प्राणायाम क्या है:
योग के आठ अंगों में से चौथा अंग है प्राणायाम। प्राणायाम
करते या श्वास लेते समय हम तीन क्रियाएँ करते हैं 1.पूरक 2.कुम्भक 3.रेचक।
इसे ही हठयोगी अभ्यांतर वृत्ति, स्तम्भ वृत्ति और बाह्य वृत्ति कहते हैं।
अर्थात श्वास को लेना, रोकना और छोड़ना। अंतर रोकने को आंतरिक कुम्भक और
बाहर रोकने को बाह्म कुम्भक कहते हैं।
योग के आठ अंगों में से चौथा अंग है प्राणायाम। प्राण+आयाम
से प्राणायाम शब्द बनता है। प्राण का अर्थ जीवात्मा माना जाता है, लेकिन
इसका संबंध शरीरांतर्गत वायु से है जिसका मुख्य स्थान हृदय में है। व्यक्ति
जब जन्म लेता है तो गहरी श्वास लेता है और जब मरता है तो पूर्णत: श्वास
छोड़ देता है। तब सिद्ध हुआ कि वायु ही प्राण है। आयाम के दो अर्थ है-
प्रथम नियंत्रण या रोकना, द्वितीय विस्तार।
हम जब सांस लेते हैं तो भीतर जा रही हवा या वायु पांच भागों में विभक्त हो जाती है या कहें कि वह शरीर के भीतर पांच जगह स्थिर हो जाती है। पांच भागों में गई वायु पांच तरह से फायदा पहुंचाती है, लेकिन बहुत से लोग जो श्वास लेते हैं वह सभी अंगों को नहीं मिल पाने के कारण बीमार रहते हैं। प्राणायाम इसलिए किया जाता है ताकि सभी अंगों को भरपूर वायु मिल सके, जो कि बहुत जरूरी है।
हम जब सांस लेते हैं तो भीतर जा रही हवा या वायु पांच भागों में विभक्त हो जाती है या कहें कि वह शरीर के भीतर पांच जगह स्थिर हो जाती है। पांच भागों में गई वायु पांच तरह से फायदा पहुंचाती है, लेकिन बहुत से लोग जो श्वास लेते हैं वह सभी अंगों को नहीं मिल पाने के कारण बीमार रहते हैं। प्राणायाम इसलिए किया जाता है ताकि सभी अंगों को भरपूर वायु मिल सके, जो कि बहुत जरूरी है।
प्राणायाम के प्रकार:-
1.पूरक,
2.कुम्भक और
3.रेचक।
(1)पूरक:-
अर्थात नियंत्रित गति से श्वास अंदर लेने की क्रिया को पूरक कहते हैं। श्वास धीरे-धीरे या तेजी से दोनों ही तरीके से जब भीतर खिंचते हैं तो उसमें लय और अनुपात का होना आवश्यक है।
(2)कुम्भक:-
अंदर की हुई श्वास को क्षमतानुसार रोककर रखने की क्रिया को कुम्भक कहते हैं। श्वास को अंदर रोकने की क्रिया को आंतरिक कुंभक और श्वास को बाहर छोड़कर पुन: नहीं लेकर कुछ देर रुकने की क्रिया को बाहरी कुंभक कहते हैं। इसमें भी लय और अनुपात का होना आवश्यक है।
(3)रेचक:-
अंदर ली हुई श्वास को नियंत्रित गति से छोड़ने की क्रिया को रेचक कहते हैं। श्वास धीरे-धीरे या तेजी से दोनों ही तरीके से जब छोड़ते हैं तो उसमें लय और अनुपात का होना आवश्यक है।
प्राणायाम के पंचक:-
1.व्यान,
2.समान,
3.अपान,
4.उदान और
5.प्राण।
इसे ही हठयोगी अभ्यांतर वृत्ति, स्तम्भ वृत्ति और बाह्य वृत्ति कहते हैं। अर्थात श्वास को लेना, रोकना और छोड़ना। अंतर रोकने को आंतरिक कुम्भक और बाहर रोकने को बाह्म कुम्भक कहते हैं।
प्रमुख प्राणायाम:-
1.नाड़ीशोधन,
2.भ्रस्त्रिका,
3.उज्जाई,
4.भ्रामरी,
5.कपालभाती,
6.केवली,
7.कुंभक,
8.दीर्घ,
9.शीतकारी,
10.शीतली,
11.मूर्छा,
12.सूर्यभेदन,
13.चंद्रभेदन,
14.प्रणव,
15.अग्निसार,
16.उद्गीथ,
17.नासाग्र,
18.प्लावनी,
19.शितायु आदि।
अन्य प्राणायाम:-
1.अनुलोम-विलोम प्राणायाम,
2.अग्नि प्रदीप्त प्राणायाम,
3.अग्नि प्रसारण प्राणायाम,
4.एकांड स्तम्भ प्राणायाम,
5.सीत्कारी प्राणायाम,
6.सर्वद्वारबद्व प्राणायाम,
7.सर्वांग स्तम्भ प्राणायाम,
8.सम्त व्याहृति प्राणायाम,
9.चतुर्मुखी प्राणायाम,
10.प्रच्छर्दन प्राणायाम,
11.चन्द्रभेदन प्राणायाम,
12.यन्त्रगमन प्राणायाम,
13.वामरेचन प्राणायाम,
14.दक्षिण रेचन प्राणायाम,
15.शक्ति प्रयोग प्राणायाम,
16.त्रिबन्धरेचक प्राणायाम,
17.कपाल भाति प्राणायाम,
18.हृदय स्तम्भ प्राणायाम,
19.मध्य रेचन प्राणायाम,
20.त्रिबन्ध कुम्भक प्राणायाम,
21.ऊर्ध्वमुख भस्त्रिका प्राणायाम,
22.मुखपूरक कुम्भक प्राणायाम,
23.वायुवीय कुम्भक प्राणायाम,
24.वक्षस्थल रेचन प्राणायाम,
25.दीर्घ श्वास-प्रश्वास प्राणायाम,
26.प्राह्याभ्न्वर कुम्भक प्राणायाम,
27.षन्मुखी रेचन प्राणायाम,
28.कण्ठ वातउदा पूरक प्राणायाम,
29.सुख प्रसारण पूरक कुम्भक प्राणायाम,
30.नाड़ी शोधन प्राणायाम व नाड़ी अवरोध प्राणायाम आदि।